संक्रमण को छोड़ दूसरी समस्याओं के लिए अस्पताल जाने से लोग कतरा रहे, 65.3% लोगों को लगता है उनके संक्रमित होने का खतरा नहीं

 कोरोना की वजह से लोग स्वास्थ्य सेवाओं के लिए अस्पताल जाने से कतराने लगे हैं। पिछले दो हफ्ते में करीब 36% लोग कोरोना के अलावा दूसरे किसी बीमारी के लिए अस्पताल नहीं गए हैं। नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) के अध्ययन में यह बात सामने आई है। शोध में पाया गया है कि सोशल डिस्टेंसिंग का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ सकता है। दिल्ली- एनसीआर क्षेत्र में लोगों से टेलीफोन पर की गई बात के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है। 


3 से 6 अप्रैल के बीच 65.3% लोगों को ऐसा महसूस हुआ कि उन्हें और उनके परिवार के सदस्य को कोरोना संक्रमण की संभावना नहीं है। ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों के लोगों ने इसका एक जैसा जवाब दिया। दो तिहाई लोगों ने माना कि यह बीमारी खतरनाक है। लॉकडाउन हटाने पर इसका खतरा और भी बढ़ सकता है। अगर इसे हटाया जाता है तो वे खुद अपना बचाव करने के बारे में बचेंगे।


53.3% लोग बाहरी लोगों के संपर्क में नहीं आए


करीब 53.3% लोगों ने माना कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए वे किसी बाहरी व्यक्ति के संपर्क में नहीं आए। वहीं 5.6% लोगों ने माना कि वे जरूरत के हिसाब से दुकानदार और राहत सामग्री बांटने वाले सामाजिक कार्यकर्ता जैसे बाहरी लोगों के संपर्क में आए। 9% लोगों को दवाएं प्राप्त करने में कठिनाई हुई, जिससे उन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्या हो सकती है। 29.3% लोगों ने सर्वे के दो पहले के दो हफ्ते में भोजन और रसोई गैस की कमी महसूस की। इनमें ग्रामीण क्षेत्रों 32.6% लोगों को और शहरी क्षेत्र के 25.3 लोगों को इनकी कमी हुई। 20.7 लोगों को सब्जियों और फलों की कमी महसूस हुई। इनमें शहरी क्षेत्रों के 15.2% और ग्रामीण क्षेत्रों के 15.2% लोग शामिल थे। 14% को अनाज और दाल और 7.8% रसोई गैस की कमी का सामना करना पड़ा।


74.5 % लोगों ने रोजगार पर असर करने की बात कही
सर्वे में शामिल ज्यादातर लोगों ने माना कि कोरोना की वजह से उनके रोजगार पर असर पड़ा रहा है। 20 मार्च तक इसका असर वेतनभोगी कर्मचारियों और किसानों पर ज्यादा नहीं हुआ। दिहाड़ी पर काम करने वाले 74.5 % लोगों ने माना कि इससे उनकी कमाई बहुत ज्यादा प्रभावित हुई है। वहीं, 46.7% सैलरीड कर्मचारी और 41.6% किसानों ने इससे नुकसान होने की बात कही।सर्वे में बताया गया है कि फसलों की कटाई के मौसम के बाद (अप्रैल अंत या मई में) किसानों पर इसका असर नजर आएगा। लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से उन्हें अपने उत्पादों को बेचने में कठिनाई होगी। अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि लोगों सामान्य सर्दी और फ्लू से कोरोना का अंतर करना मुश्किल होगा। ऐसे में जरूरी है कि सिम्पटोमैटिक मामलों की टेस्ट और क्लस्टर टेस्टिंग बढ़ाया जाए।